लाउडस्पीकर पर आरती/अज़ान, क्या हो इस मसले का हल?
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धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर को लेकर आए दिन विवाद हो रहे हैं। इसके लिए लोग अदालत चले जाते हैं। वहां उन्हें आशानुकूल निर्णय नहीं मिलता। सबसे पहले तो यह दलील ही हैरान करने वाली है कि धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर चलाना किसी का संवैधानिक अधिकार या धर्म से जुड़ा मामला है।
.. राजीव शर्मा ..
धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। इस संबंध में आज (6 मई, 2022) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से भी टिप्पणी आई है। न्यायालय ने एक व्यक्ति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि 'कानून में अब स्पष्ट हो चुका है कि मस्जिदों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करना मौलिक अधिकार नहीं है।'
न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की पीठ ने यह आदेश दिया है। पीठ ने बदायूं जिले के इरफान नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई की थी।
इरफान की ओर से दलील दी गई कि मस्जिद में लाउडस्पीकर पर अज़ान उसका मौलिक अधिकार है। यह याचिका उप-जिलाधिकारी द्वारा 3 दिसंबर, 2021 को पारित एक आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि उप-जिलाधिकारी का आदेश पूरी तरह अवैध है और इससे मस्जिद में लाउडस्पीकर बजाने के मौलिक एवं विधिक अधिकारों का हनन हो रहा है। हालांकि न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार नहीं किया और याचिका खारिज कर दी।
धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर को लेकर आए दिन विवाद हो रहे हैं। इसके लिए लोग अदालत चले जाते हैं। वहां उन्हें आशानुकूल निर्णय नहीं मिलता। सबसे पहले तो यह दलील ही हैरान करने वाली है कि धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर चलाना किसी का संवैधानिक अधिकार या धर्म से जुड़ा मामला है।
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यहां संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक मामलों को समझना जरूरी है। संविधान हमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसका अर्थ है कि हम स्वेच्छा से धर्म का पालन कर सकते हैं, उसकी अच्छाई बयान कर सकते हैं, प्रचार कर सकते हैं, लेकिन संविधान में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को मौलिक अधिकार नहीं बताया गया है और न यह किसी धर्म का अनिवार्य अंग है।
ऐसे में अगर कोई हिंदू भी न्यायालय जाकर यह दलील दे कि मंदिर में लाउडस्पीकर पर आरती करना मेरा मौलिक अधिकार है तो जज उसकी याचिका खारिज करेगा। इसी तरह कीर्तन, रात्रि जागरण, कांवड़ यात्रा का लाउडस्पीकर से कोई धार्मिक संबंध नहीं है। यह यंत्र कुछ दशक पहले आया है। इससे पहले सभी धार्मिक कार्यक्रम बिना लाउडस्पीकर के ही संपन्न होते थे।
मैंने 2021 की दीपावली पर पटाखों को लेकर एक टिप्पणी की, जिसके बाद सैकड़ों लोगों ने मुझे खरी-खोटी सुनाई थी। जिन लोगों को सांस संबंधी दिक्कतें होती हैं, उन्हें पटाखों के धुएं से परेशानी होती है। पटाखे इस त्योहार का अनिवार्य अंग नहीं हैं, लेकिन अगर आप लोगों को समझाएंगे तो वे इसे नहीं मानेंगे। चूंकि उन्होंने बचपन से ही ऐसा होते देखा हे, इसलिए उन्हें लगता है कि यह हमारे धर्म का अनिवार्य अंग है।
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अब मैं इस पर आता हूं कि लाउडस्पीकर संबंधी मसले का हल क्या हो। मेरा मानना है कि इसके दो तरीके हो सकते हैं:
1. धार्मिक स्थानों की कमेटियां ख़ुद तय कर लें कि वे लाउडस्पीकर की आवाज इतनी रखें कि लोगों को इससे दिक्कत न हो। साथ ही लोग भी सहयोग बनाकर चलें। सबसे श्रेष्ठ तरीका तो यही है। लोग ख़ुद एक-दूसरे की भावनाओं का ख़याल रखें।
2. अगर फिर भी विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं तो स्पष्ट नियमावली बनाई जाए और वह सख्ती से लागू की जाए। इसके दायरे में मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और समस्त धार्मिक स्थान आने चाहिएं। सबके लाउडस्पीकरों की आवाज या तो कम करा दें या उन्हें बंद करवा दें। ध्यान रहे, यह नियम सभी धार्मिक स्थानों पर लागू होना चाहिए, किसी को छूट न मिले।
लाउडस्पीकर एक वैज्ञानिक यंत्र है, सुविधा है, जो कुछ दशक पहले अस्तित्व में आई थी। हमें विज्ञान के आधार पर इसका कोई विकल्प सोचना चाहिए। इसका एक तरीका यह हो सकता है कि जिसे मंदिर, मस्जिद आदि धार्मिक स्थानों पर पूजा/इबादत के लिए जाना है, वह अपने मोबाइल फोन पर अलार्म लगा ले। जो नियमित आरती/नमाज़ में शामिल होता है, उसके लिए यह याद रखना कोई मुश्किल काम नहीं है। आजकल सबके पास मोबाइल फोन है। इसके अलावा संबंधित मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे का वॉट्सऐप ग्रुप बनाया जा सकता है, जिसके जरिए लोगों को सूचना भेजी जा सकती है। इनका लाइव प्रसारण किया जा सकता है। और भी कई तरीके हैं। मैंने आसान तरीके बताए हैं। रोज़-रोज़ लाउडस्पीकर के नाम पर झगड़े से बेहतर है कि ऐसी नियमावली लागू कर दी जाए, जिसमें न किसी को विशेषाधिकार मिले और न किसी को दबाया जाए। हम इस यंत्र को लेकर जितना झगड़ रहे हैं, उसके आविष्कारक ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।
वैसे आपको एक और मज़ेदार बात बताता चलूं। एक समय था जब जहाज़/ट्रेन की सवारी, प्रिंटिंग प्रेस, लाउडस्पीकर, एक्सरे, सीटी स्कैन, कैलकुलेटर, टीवी और कई चीज़ों को धर्मविरुद्ध/हराम माना जाता था।
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