क्या हम विदेशी साजिशों के कारण ज्ञान-विज्ञान में पिछड़ गए?
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ऐसे प्रतिकूल वातावरण में ये वैज्ञानिक खोज में जुटे रहे और आज मानव जाति को उनके परिश्रम एवं त्याग का लाभ मिल रहा है। दूसरी ओर हम सिर्फ यही कहते रह गए कि हमारे खिलाफ साजिश हो गई, हमारी किताबें यूरोप वाले ले गए और उनसे नकल करके आविष्कार कर लिए।
.. राजीव शर्मा ..
आज मोबाइल फोन हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा है। क्या आप जानते हैं कि इसका आविष्कार किसने किया था? इसका श्रेय मार्टिन कूपर को जाता है, जिन्होंने मोटरोला कंपनी की अपनी टीम के साथ साल 1973 में पहला मोबाइल फोन पेश किया था। मार्टिन अमेरिकन इंजीनियर हैं।
इस आविष्कार ने हमारी ज़िंदगी को कितना आसान बना दिया है! आज बातचीत, पढ़ाई, कारोबार से लेकर कितनी ही चीजें मोबाइल फोन से मुमकिन हैं। मोबाइल से नुकसान भी हुए हैं लेकिन इसमें उसका नहीं, इन्सान का दोष है। ग़लत इस्तेमाल ग़लत नतीजे देता है।
यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। अगर पिछले 200 वर्षों का इतिहास देखें तो ऐसे अनगनित आविष्कार हो चुके हैं जिन्होंने हमारी ज़िंदगी को आसान बनाया है। हवाईजहाज़, सिलाई मशीन, रेडियो, ट्रेन ... जैसी सुविधाएं आम आदमी तक पहुंच गई हैं, जिनके बारे में पांच सौ साल पहले राजा-बादशाहों ने सोचा भी नहीं होगा।
आसान शब्दों में कहा जाए तो विज्ञान के कारण आज एक आदमी को जितनी सुविधाएं मिल रही हैं, वे शहंशाह अकबर और महाराजा अशोक को नहीं मिली थीं। चाहे आप हवाईजहाज़ से हज करने जाते हों या ट्रेन से रामेश्वरम् ... हर दृष्टिकोण से हमारी ज़िंदगी बेहतर/आसान हुई है।
मैंने ऐसे कुछ लोगों की सूची देखी जिन्होंने ऐसे आविष्कार किए जिनका संबंध आम आदमी की ज़िंदगी से है। इनमें से कुछ नाम इस प्रकार हैं: (क्रम- आविष्कार-साल-आविष्कारक)
हवाईजहाज़-1903-ऑरविल और विल्बर राइट
हेलीकॉप्टर-1924-एटीन ओमिचन
पैराशूट-1797-एजे गारनेरिन
रॉकेट-1926-रॉबर्ट गोडार्ड
साइकिल-1839-40-किर्कपैट्रिक मैकमिलन
पेट्रोल कार-1888-कार्ल बेंज
डीजल इंजन-1895-रुडोल्फ डीजल
जहाज (भाप)-1775-जेसी पेरियर
मोटर साइकिल-1885-कांस्टाट केजी डेमलर
बॉल पोइंट पेन-1888-जॉन जे लाउड
मैकेनिकल घड़ी-1725-आई सिंग और लियांग टिंग सान
पेंडुलम घड़ी-1656-क्रिसस्टियन हागन्स
इलेक्ट्रिक लैंप-1879-थॉमस अल्वा एडीसन
फ़ाउंटेन पेन-1884-लुईस ई वाटरमैन
ग्रामोफ़ोन-1878-थॉमस अल्वा एडीसन
माचिस-1826-जॉन वाकर
फ्रिज-1850-जेम्स हैनसन और एलक्सैंडर कैटलिन
सिलाई मशीन (चैन स्टिच)-1841-बार्थेलेमी थिमोनियर
सिलाई मशीन (लॉक स्टिच)-1846-इलियास होवे
टाइपराइटर-1867-क्रिस्टोफर एल शोल्स
(मैंने ध्यान से यह तालिका टाइप की है। फिर भी कहीं ग़लती रह जाए तो क्षमाप्रार्थी हूं।)
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ऐसे लगभग 400 आविष्कारों के बारे में पढ़ते जाएं तो आपको लगभग सभी यूरोपीय और अमेरिकन मिलेंगे। उनमें हिंदू और मुस्लिम भी हैं लेकिन बहुत ही कम। बाकी सब या तो ईसाई हैं या यहूदी। उन वैज्ञानिकों की जीवनी पढ़ने पर तो एक और आश्चर्यजनक बात मिलती है। पिछले करीब 100 सालों में जन्मे वैज्ञानिकों को समाज और सरकारों से काफी प्रोत्साहन मिला है। उससे और पीछे जाएं तो वैज्ञानिकों के लिए ज़माना मुश्किल होता जाता है। चार सौ-पांच सौ साल पहले यूरोप में वैज्ञानिक अपने विचारों के लिए दंडित किए जाते थे। उन्हें जेलों में डाल दिया जाता था। महान वैज्ञानिक गैलीलियो इसके उदाहरण हैं।
ऐसे प्रतिकूल वातावरण में ये वैज्ञानिक खोज में जुटे रहे और आज मानव जाति को उनके परिश्रम एवं त्याग का लाभ मिल रहा है। दूसरी ओर हम सिर्फ यही कहते रह गए कि हमारे खिलाफ साजिश हो गई, हमारी किताबें यूरोप वाले ले गए और उनसे नकल करके आविष्कार कर लिए।
यह पूरी तरह से बेबुनियाद है। चूंकि पूर्व में यूरोप के ज्यादातर वैज्ञानिकों की आर्थिक स्थिति साधारण या निम्न स्तर की थी। शासक वर्ग उन्हें धर्म के खिलाफ समझकर कड़ी नजर रखता था। अगर वास्तव में साजिश होती तो ये लोग मालामाल होते और ऐशो-आराम की ज़िंदगी बिताते।
यह कहना भी उचित नहीं है कि उन्होंने हमारी किताबों की नकल करके आविष्कार कर लिए। हमारी किताबें सदियों से हमारे पास हैं, हम ऐसा क्यों नहीं कर पाए? इसका मतलब हम उस आलसी छात्र की तरह हैं जो सालभर अपनी किताबें खोलकर नहीं देखता? आज दुनियाभर की किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। हम उन्हें पढ़कर विज्ञान में शीर्ष पर क्यों नहीं पहुंच जाते? क्यों हमें अपनी वैज्ञानिक प्रगति का उदाहरण देने के लिए हज़ार साल पीछे जाना होता है?
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वास्तव में यह किसी साजिश का नहीं, हमारी अपनी ग़लतियों का नतीजा है। हम सदियों से अपनी ऊर्जा निरर्थक बहस में लगाते रहे हैं। खाना खाकर पांच बार हाथ धोऊं या पचास बार, रेल का सफर धर्म विरुद्ध है या नहीं, पानी के जहाज में सफर से पाप होता है या पुण्य, प्रिंटिंग प्रेस हराम है या नहीं ... कोरोना का टीका लगवाने से बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी या नहीं ...?
हम आज भी इन्हीं सबमें उलझे हैं, इसलिए आशानुकूल प्रगति नहीं कर रहे। अगर हम सुबह देर से उठते हैं तो सूरज को इसके लिए दोषी नहीं ठहरा सकते। वह अपने समय पर आएगा और आगे बढ़ता जाएगा। इसी तरह ज्ञान-विज्ञान का सूरज किसी का इंतजार नहीं करता। अगर हम कुछ नहीं करेंगे तो कोई और करेगा। इसलिए प्रगति करनी है तो निरर्थक विषयों में ऊर्जा बर्बाद करने से बचना होगा। सार्थक विषयों को अपनाना होगा।
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