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क्यों छिदवाया जाता है कान? आप भी जानें इसके पीछे की खास वजह
हिंदू धर्म में कर्ण छेदन किया जाता है. (फोटो साभार: freepik)
ज्योतिष की मानें तो हम अपना जीवन सुखद और खुशहाल तरीके से बिता सकते हैं. सफलता पाने के लिए ज्योतिष में कुछ खास उपायों के बारे में बताया गया है, जिससे आप आर्थिक समस्याएं भी दूर कर सकते हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि कई लोग कान छिदवाते हैं. हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को माना जाता है, उसमें से एक कर्ण छेदन यानी कान छेदने का संस्कार है. बाल्यावस्था में ही बच्चों का यह संस्कार करवाया जाता है. चलिए जानते हैं कि कर्ण छेदन क्यों करवाया जाता है.
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16 संस्कारों में से एक है कर्ण छेदन
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को माना जाता है, उसमें से एक कर्ण छेदन यानी कान छेदने का संस्कार है. इस संस्कार के तहत बचपन में भी बच्चों के कान छिदवाए जाते हैं. लड़कों का दायां कान और लड़कियों के दोनों का छिदवाए जाते हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंत्र उच्चारण के साथ कान को छेदवाया जाता है और उसमे सोने का तार पहनाया जाता है.
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कर्ण छेदन सस्कार का महत्व
हिंदू धर्म में कर्ण छेदन का अलग ही महत्व है. इसे सैंदर्य, बुद्धि और सेहत के लिए खास माना जाता है. माना जाता है कि बच्चों के कर्ण छेदन से उनकी सुनने की क्षमता बढ़ जाती है. विज्ञान कहता है कि कान छिदने से लकवा जैसी गंभीर बीमारी का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है. कान का निचला हिस्सा मस्तिष्क से जुड़ा होता है और यह दिमाग को तेज करता है.
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कब करवाते हैं कर्ण छेदन?
हिंदू धर्म में कर्ण छेदन के अलग-अलग शुभ मुहूर्त होते हैं. माना जाता है कि बच्चे के जन्म के 12वें या 16वें दिन कान छिदवाना सर्वोत्तम है. इसके अलावा, इस संस्कार को जन्म के छठे, 7वें या 8वें महीने में किया जा सकता है. अगर आप चाहें, तो बच्चे के तीसरे, पांचवें या सातवें साल में कर्ण छेदन करवा सकते हैं.
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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ओपोई इसकी पुष्टि नहीं करता है